स्नेहा के होठों पर हंसी
दयाल G अपने बेटे से मिलने उसके हॉस्टल गए। वे बेटे से इधर-उधर की बातें करते रहे। बेटे के साथ उसका मित्र भी था। दयाल जी उस बच्चे से भी हालचाल पूछने लगे। उन्होंने पूछा, 'बेटे, तुम कैसे हो?'
उस बच्चे की आंखों में आंसू आ गए। उसने कहा, 'मां की बड़ी याद आती है।' दयाल जी को तसल्ली हुई कि बच्चे हॉस्टल में आकर माता-पिता को नहीं भूलते।
दयाल जी ने फिर अनायास पूछा, 'मां की याद क्यों आती है?'
बच्चे ने मुंह बनाकर कहा, 'हॉस्टल में खाना बड़ा
खराब मिलता है।'ज्ञान देव मुकेश
द्वारा-श्री पी.एन. शाही, बजाज सर्विस के पास, रोड
नं, 18 chawri bazar mathura.
ब्यूटी पार्लर से लौटी स्नेहा को देखते ही जानकी की आंखें आश्चर्य से फैलती चली गईं, वो बोली-'मैडम...आज आप गजब की खूबसूरत लग रही हैं। 'अरी जानकी...तू क्या समझेगी, इस खूबसूरती के लिए पूरे ढाई हजार खर्च किए हैं, तब जाकर चेहरा ठीकठाक लगने लगा है।' स्नेहा ने स्वयं को दर्पण में गौर सेदेखा। आज उसकी नजर अपने आप पर से ही नहीं हट रही थी।
'दैय्या रे दैय्या...इत्ते पैसे...मेरी तो महीने की पगार बैठती है इत्ती, दिन-रात मरो खपो तब कहीं इत्ते पैसे जुड़ पाते हैं।' अपनी स्थिति का आकलन करने लगी जानकी। 'जानकी...तू भी बस... सुन तू बहुत अच्छी है जो इस सबसे दूर है। मेरी खूबसूरती तब तक है जब तक मैं अपना मुंह नही धोती और तेरी खूबसूरती तब-तब निखरती है, जब-जब तू मुंह धोती है।' स्नेहा गंभीर हो गई। 'मैडम...तुम्हारी बातें हमारे पल्ले तो पडऩे से रही...।' जानकी ने मासूमियत से कहा। 'यही तो तेरी खूबसूरती है पगली...।' स्नेहा के होठों पर हंसी रेंग गई।
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